DANGAL AT VILLAGE NARAAINA , By Raju Pahlwan
In the memory of Great Bhagwana Pahlawan
Preetam is an International Medal Winner wrestler from Mehar Singh Akhada Rohta, His coach Ranveer Dhaka is one of the greatest Gurus of India. He has been teaching hundreds of stundents at his academy at Rohtak , haryana. I have always praised his academy and his work for wrestling.
Here is disciple Preetam fights with Jeetu Pahlwan, This match is a real delight to watch
In the memory of Great Bhagwana Pahlawan
Preetam is an International Medal Winner wrestler from Mehar Singh Akhada Rohta, His coach Ranveer Dhaka is one of the greatest Gurus of India. He has been teaching hundreds of stundents at his academy at Rohtak , haryana. I have always praised his academy and his work for wrestling.
Here is disciple Preetam fights with Jeetu Pahlwan, This match is a real delight to watch
महाबली भगवाना पहलवान की याद में ,
चौधरी सुखबीर सिंह के नेतृत्व में ,
नारायणा गाँव का विशाल ऐतिहासिक इनामी दंगल।
अपने बचपन में , अखाड़े के बच्चों के साथ , नारायणा गाँव के दंगल में कुश्ती दंगल में लड़ने की बातें आज भी मुझे याद हैं। तब उम्र सात आठ साल के लगभग रही होगी। सवेरे जल्दी ही दंगल के लिए निकल लेना , घर से नारायणा की बस यात्रा तब दिल्ली इतनी विकसित भी नही थी , ट्रांसपोर्ट के साधन आज से न थे। दिल्ली के इस कोने से उस कोने जाना मन को बहुत रोमांचित कर दिया करता। उस समय घर से दूर जाने की अक्सर मनाही जो होती , तो उस रूल के खिलाफ दूर दूर कुश्तियों में जाना सचमुच क्रांतिकारी था। उस समय और इस समय के नारायणा गाँव में बहुत बड़ी तब्दीली हैं। अब शहर गाँव के भीतर आ गया हैं। और गाँव कहीं खो सा गया लगता हैं। हाँ नहीं बदली तो नारायणा गाँव में दंगल की परंपरा।
चौधरी सुखबीर सिंह के नेतृत्व में ,
नारायणा गाँव का विशाल ऐतिहासिक इनामी दंगल।
अपने बचपन में , अखाड़े के बच्चों के साथ , नारायणा गाँव के दंगल में कुश्ती दंगल में लड़ने की बातें आज भी मुझे याद हैं। तब उम्र सात आठ साल के लगभग रही होगी। सवेरे जल्दी ही दंगल के लिए निकल लेना , घर से नारायणा की बस यात्रा तब दिल्ली इतनी विकसित भी नही थी , ट्रांसपोर्ट के साधन आज से न थे। दिल्ली के इस कोने से उस कोने जाना मन को बहुत रोमांचित कर दिया करता। उस समय घर से दूर जाने की अक्सर मनाही जो होती , तो उस रूल के खिलाफ दूर दूर कुश्तियों में जाना सचमुच क्रांतिकारी था। उस समय और इस समय के नारायणा गाँव में बहुत बड़ी तब्दीली हैं। अब शहर गाँव के भीतर आ गया हैं। और गाँव कहीं खो सा गया लगता हैं। हाँ नहीं बदली तो नारायणा गाँव में दंगल की परंपरा।
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